अनजानी राहों में।
अनजानी राहों में।
हम कदम दर कदम बढ़ते गए
जीवन की अनजान राहों में
कभी गिरते कभी संभालते रहे।
कभी मधुबन, कभी जंगल
कभी कटीले झाड़ों में।
तन में चुभे कांटों से
बचकर निकलते रहे।
साथ जो तेरा मिला
एक नया चमन खिला
हरियाली राहों से
रिमझिम सी बूंदों में
सोने सी सूर्य किरण
साथ ले चलते रहे।
कंकरीली राहें भी
कांटों की छाया भी
फूल सी लगने लगी
तेरे हम कदम बने
साथ हम चलते रहे
साथ छोड़ तुम गए
और चमन गुम गए
अनजानी राहों पर
बेबस बेहाल हो
मजबूर कदमों से
हम अकेले बढ़ गए।
