अंजाम की फितरत
अंजाम की फितरत
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कभी आँधी उड़ा ले जाती है
झरते पत्तों को सैलाब की तरह।
उसी तरह,
कभी ज़िंदगी बिखर जाती है
और समेटना मुश्किल हो जाता है
अब हर किसी के पास तो
हुनर होता नहीं
गिरते पत्तों को लपक ले
गिरने से पहले
वो पत्ता भी कहाँ जानता है,
अपनी किस्मत
जिस साख से टूटा
और अंजाम की फितरत।
कभी पहुँच जाता है
कोई अंजाम तक
तो किसी को
रास्ता ही नहीं मिलता।।