अनेकता में एकता
अनेकता में एकता
हम ऐसा राष्ट्र,
जिसमें भिन्न भिन्न जातियां,
भिन्न भिन्न धर्म,
अलग अलग समुदाय,
खानपान भी जुदा जुदा,
रहन सहन भी अलग थलग,
पहनावा भी विभिन्न विभिन्न,
भाषाएं भी अनेक,
लाजमी है,
ऐसी अनेकता में,
मन मुटाव भी होते,
हम मिल बैठकर सुलझाते,
फिर से एक हो जाते,
योनि अनेकता में एकता।
हमारा राष्ट्र ही है,
ऐसा राष्ट्र,
जहां हर ॠतु आती,
हर तरह की भुमि,
कहीं उपजाऊ,
कहीं जंगल,
कहीं समंदर,
कहीं रेगिस्तान,
कहीं पहाड़,
लेकिन फिर भी,
हमारी एकता बेमिसाल।
हम में बहुत गरीबी,
हम में,
दुनिया में,
सबसे अधिक अमीर,
हमारे यहां बहुत अशिक्षा,
परंतु दुनिया में,
सबसे अच्छे शिक्षित भी,
इतना कुछ होते हुए भी,
हमारे राष्ट्र में स्थायित्व।
ये सब है,
हमारे संविधान की बदौलत,
वो हर व्यक्ति को देता आजादी,
अपनी बात रखने की,
फिर उस पर होती,
खूब बहस,
उसका होता विश्लेषण,
तब जाकर,
वो अमलीजामा पहनती।
लेकिन आखिर हम हैं इंसान,
हम भी,
आज के भौतिक वाद से प्रभावित,
हम भी अपने फायदे के लिए,
व्यवस्था को तोड़ते मरोड़ते,
अपने उपयोग लाते,
अंत में,
अनुचित लाभ उठाते।
इसके लिए,
कुछ आवश्यक कदम उठाने होंगे,
चुनाव आयोग, पुलिस और प्रशासन को मिले,
संपूर्ण स्वायत्तता,
उनका उत्तरदायित्व,
सिर्फ हो,
संविधान के प्रति,
किसी भी,
व्यक्ति विशेष के प्रति नहीं।
फिर हो जाएगा,
कानून का शासन स्थापित,
कुछ भी,
कोई नहीं अनुचित कर पाएगा,
और हमारा स्वर्णिम युग,
लौट आएगा।