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Madhurendra Mishra

Romance

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Madhurendra Mishra

Romance

अँधेरी रात फिर छा गई

अँधेरी रात फिर छा गई

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ऐसी अँधेरी रात फिर छा गई,

जो छुपा रखी थी लब पर, वही बात आ गई।


हम सुनसान राहों के मुसाफ़िर बन गए 

सफ़र अनोखा ख़्वाब था,

उम्मीदों के चेहरे पर फेंका 

दुनिया ने ऐसा तेज़ाब था।


फुर्सत की तलाश में

चिंताएँ बेहिसाब आ गईं,

जो पढ़ न सके कोई

बाज़ार में वही किताब आ गई।


हम चलते रहे कारवाँ बनता रहा

पथ के मध्य में कई राग गाए गए,

इस भारी बारिश में

मोहब्बत के चिराग जलाए गए।


रुके थे हम इस दुनिया में

बिन मौसम बहार आ गई,

जिसको भुलाना था मन से

कोशिश में अपने हिस्से हार आ गई।


टूट गए सारे सपने हैं

अपनों ने साथ छोड़ दिया,

हवा ने भी इस तरफ से

अपना रुख़ मोड़ दिया।


इस पल में बैठे हुए

मन में उसकी याद आ गई,

अकेलेपन के दौर में

इश्क़ भी मौत के बाद आ गई


ऐसी अँधेरी रात फिर छा गई,

जो छुपा रखी थी लब पर वही बात आ गई।


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