कुछ अनकही बातें
कुछ अनकही बातें
रुक जा हमसफर मेरे,
एक पल बैठ तो सही,
कुछ बातें कहनी है,
जो थी अभी तक अनकही।
तेरे जाने के बाद का मंजर देख,
जो ग़मों से भर पूर है,
बिखरे हुए हैं दिल के टुकड़े,
न बचा कोई जिन्दगी में नूर है।
रातों के सपने गायब हैं ,
दिन हैरानी में बिताते हैं ,
तेरे से जुड़ी यादों को,
आँसू बहाकर मिटाते हैं ।
क्या यही अंजाम-ए-इश्क़ है,
जो मुझे मिला है,
तू न होकर भी यहाँ है,
बस खताओं से गिला है।
तेरे मेरे मन के धागें आपस में बंधे हुए हैं ,
न इस कदर इसे तोड़,
साथ निभा न मेरा,
मेरे तरफ से रुख़ मत मोड़।
गुमनामी भरी जिंदगी है,
न इस दरिया का कोई किनारा है,
इस रफ़्तार भरी महफ़िल में,
तेरे बिना दिल मेरा बेसहारा है।
तुम भी उदास हो ,
ये मैं जानता हूँ,
खोया जरूर है तुमको,
लेकिन अपनी जीने की वजह तुम्हें मानता हूँ।
आए-गए कितने मौसम
इस शब में,लिखे गए कई ख़त हैं ,
लेकिन तुम ही बेशुमार ख़्वाब हो,
इस पर वक़्त का भी एक मत है।
यही वो बातें थीं जिनको दिल में छुपाया था,
लेकिन तुम्हें ही पाने की चाहत को मैंने अपना फर्ज़ बनाया था।