विष्णु अवतार वाणी
विष्णु अवतार वाणी
मैं विष्णु हूँ।
मत्स्य का रूप हूँ,
वराह का स्वरूप हूँ,
कूर्म जैसा अनूप हूँ,
मैं ही छाया मैं ही धूप हूँ।
मैं ही हूँ जिसने द्वारका
बसाई थी,
मैं ही हूँ जिसने स्वर्णनगरी
लंका जलवाई थी,
मैंने ही महाभारत करवाई थी,
मैंने ही सीता से अग्निपरीक्षा
दिलवाई थी।
मनु को मैंने प्रलय से बचाया था,
बली को मैंने पाताल नरेश
बनाया था,
सुदामा मेरे पास ही आया था,
कृष्ण वर्ण मेरा काया था।
पशुराम का क्रोध हूँ,
अधर्म के पथ पर अवरोध हूँ,
मैं ही विज्ञान मैं शोध हूँ,
पापियों का करता विरोध हूँ।
मैंने ही रास लीला रचाई थी,
मैंने ही माखन चुरा कर खाई थी,
द्रौपदी की लाज मैंने ही बचाई थी,
गीता अर्जुन को सुनाई थी।
मैंने ही सबरी के झूठे बेर को
खाया था,
मैंने ही जरासंध वध करवाया था,
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मैंने ही बोध ज्ञान पाया था,
मैंने ही वनवास में चौदह वर्ष
बिताया था।
यशोदा का प्यारा हूँ,
दशरथ का दुलारा हूँ,
हनुमान का सहारा हूँ,
प्रहलाद के लिये न्यारा हूँ।
सुदर्शन मैंने ही चलाया था,
युगपरिवर्तन मुझसे ही आया था,
धर्म को पुनः बसाया था,
अहिल्या को पाप मुक्त करवाया था।
रावण को मारा था,
कंश मुझसे ही हारा था,
गोवर्धन को उँगली पर उठाया था,
कर्म का ज्ञान मैंने ही बताया था।
मैं ही मर्यादा पुरुषोत्तम राम हूँ,
मैं ही राधा का श्याम हूँ,
मैं ही चारों धाम हूँ,
मैं ही पालक का नाम हूँ।
कल्कि का अवतार मैं,
जगत का आधार मैं,
भक्तों का संसार मैं,
जीवन का सार मैं।
यह मेरी वाणी है,
जो पढ़ें वही ज्ञानी है,
कई लोगों को हैरानी है,
धर्म स्थापना ही मैंने ठानी है।