वक़्त-ए-इश्क़
वक़्त-ए-इश्क़
रुक गया वक़्त वो
यहाँ से चला गया था,
अपने दिल पर पत्थर रख
यह फैसला कहा गया था।
रूठा था दिल उसका भी मेरे जाने से,
बहुत उदास थी वो मुझे न पाने से।
मैं भी खोया था उसके ख्यालों में,
बस उलझा-सा ज़िन्दगी के अतरंगी सवालों में।
लोग कहते थे यूँ ही हार जाएगा,
वो जाकर थोड़े न तेरे पार आएगा।
किसी तरह दिल को मनाते थे,
कल भूल जायेंगे आज
यह कसम खाते थे।
सारे जगमग सितारों का
अम्बार सामने सजा था,
लेकिन उसकी यादों में डूबे
रहने का अलग ही मजा था।
लेकिन हारा नही था मैं
उम्मीदें अभी भी बाकी थी,
सच्चा प्यार क्या होता है
यह तो बस एक झाँकी थी।
एक दिन सब्र न हुआ
सोचा जाकर पूछूँ उससे,
क्या फिर बात
करना चाहेगी मुझसे।
वो दूर रहना चाहती थी
इसलिये न कह दिया,
नहीं करेगी बात
यह ऐलान कर दिया।
हृदय हर दिन टूट रहा था
जिन्दगी का वास्ता छूट रहा था,
एक दिन पूरा सच बोल दिया जो
छुपे हुए थे राज सब खोल दिया।
उसने भी सारे दर्द-ए-बयाँ सुना दिए,
दिल में रखे सारे फ़सान सुना दिए।
कहा मैं भी वैसी थी यहाँ,
ज़िन्दगी के आयाँ में जैसा तू था वहाँ।
अब नही जाऊँगी तुझे छोड़कर,
खोया बहुत कुछ तुझसे मुँह मोड़कर।
हाँ अब दुनिया में हम साथ है,
और उसके हाथ में मेरा हाथ है।
वो मेरी है मेरी रहेगी,
अब दुनिया भी ये बात कहेगी।