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Madhurendra Mishra

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Madhurendra Mishra

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नमस्कार! मैं दिल्ली हूँ

नमस्कार! मैं दिल्ली हूँ

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नमस्कार! मैं दिल्ली हूँ,

पांडवों की नगरी हूँ,

अकबर की हुकूमत हूँ,

भारत की राजधानी हूँ,

दिलवाले होते है यहाँ,

मस्ताने बसते है यहाँ,

सियासत सजती है यहाँ,

कहीं देखा है ऐसा जहाँ।


नेहरू का दुलारा हूँ,

गाँधी का सहारा हूँ,

हिन्दुस्तान का प्यार हूँ,

लेकिन थोड़ा-सा अवारा हूँ,

शाहरुख़ सा दीवाना हूँ,

फज़ली का अफ़साना हूँ,

चेतन का लेख हूँ,

विराट का क्रिकेट हूँ।


मुकेश का गीत मैं,

रवि का संगीत मैं,

हुसैन का कला मैं,

ग़ालिब का गला मैं।

नेताओं के लिये चाहत हूँ,

प्रवासियों के लिए राहत हूँ,

भ्रष्टाचार से अवगत हूँ,

ज़ायके का जगत हूँ।


अदालत का फैसला हूँ,

बच्चों का हौसला हूँ,

गौरेया का घोसला हूँ,

अमीर का चोंचला हूँ,

देश की सरकार हूँ,

विद्यार्थियों की पुकार हूँ,

सपनों में साकार हूँ,

दूसरों के लिए निराकार हूँ।


अनंगपाल ने मुझे खोजा,

इतिहास ने मुझे पूजा,

विश्व में नहीं कोइ दूजा,

यमुना को भी मेरे सिवा न कोई सुझा,

84 का दंगा मैंने देखा,

जब संसद पर मेरे किसी ने बम फेंका,

दुश्मनों के लिए लक्ष्मण रेखा,

शहर हूँ बड़ा अनदेखा।


निर्भया कांड का दर्शक हूँ,

किसी के लिए भक्षक हूँ,

जनता का रक्षक हूँ,

पता नही बना क्यों तक्षक हूँ,

अंग्रेज़ों का दिल्ली दरबार मैं,

बदमाशों से ख़बरदार मैं,

सब में से समझदार मैं,

भारत का आधार मैं।


लेकिन थोड़ा-सा डगमग हो गया,

समय के असर में खो गया,

ये न समझना कि मैं सो गया,

जो होना था सो हो गया,

फिर उठ खड़ा हो जाऊँगा,

शान्ति का संदेश फैलाऊंगा,

राष्ट्रध्वज को लहराऊँगा,

अतः देश की शान कहलाऊँगा।


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