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SANDIP SINGH

Horror

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SANDIP SINGH

Horror

अमावस्या की काली रात

अमावस्या की काली रात

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अमावस्या की काली रात थी,

जाड़ों की ठंढी मौसम थी।


कंपकापते ठंढ से लोग,

 गर्म बिस्तरों में दुबके हुए थे।


आधी रात के समय में,

मेरा बीच के किनारे घूमना।


समुंद्र की वह भयानक लहर,

तूफानों सी वेग में लहरा रही थी।


हवा भी कुछ कम न थी,

सायं _सायं की आवाज़ दे रही थी।


ऐसे में मेरा अकेले वह नजारा देखना,

काफ़ी दिलचस्प थी।


इतना में ही एक सफ़ेद साया,

मेरे सामने से गुजरी।


जिसे देखकर मेरा रोम_रोम,

रोमांचित हो गया था।


अब वह काली रात,

डरावनी हो गई थी।


मन में एक उधेड़_बून,

चलने लगा था।


झटके में वह साया समुंद्र में,

विलीन हो गई थी।


सफेद साड़ी में लिपटी,

काली झूल्फ़ कमर तक लटकी थी।


पांव उसके जमीन से,

उपर ही रहती थी।


मानों मुझे दर्शन देने ही,

प्रकट हुई थी।


विद्युत की फुर्ती से,

मेरे आंखों से ओझल हुई थी।


मैं सोचता ही रह गया था,

और वह साया समुंद्र में विलीन हो गई।


एक डर और अजीव रोमांच में,

मैं भी अपने घर आ सो गया।


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