डर
डर
ये कहानी कुछ ऐसी है,
जो सिर्फ़ मेरी अभी की स्थितियों पर आधारित है।
ये बातें मेरे हृदय को कठोर कर रही है।
ये रातें मुझे अंदर से झकझोर रही है।
ये आंसू मेरे रुकते नहीं,
ये गम अब झुकते नहीं।
ये शामेँ भी अब नरम नहीं
मेरे जख्मों का कोई मरहम नहीं।।
मुझे ये शोर सुनाई देने लगा है, मानो वो ये कह रहा हो
"भाग भाग तूं, जहां है भागना
ये गली गली, ये डगर डगर
सब मुझ तक ही तो आएगी।
जितनी भी तूं कोशिश कर ले,
ये ज़िंदगी ही तुझको खा जायेगी।
ना दुनिया, ना दोस्त, कोई न तुझे बचा पाएगा
अंत में तेरी दुनिया, मेरे अंदर ही समा जायेगी।
जानता है मैं कौन हूं?
मैं वो खौफ हूं, जिससे तूं हर समय भाग रहा।
मैं ही वो डर हूं, जिसकी वजह से तूं अंधेरे में जाग रहा।
मैं तेरे अंदर मौजूद हूं, मैं तेरा ही एक वजूद हूं।
तूं अभी मेरी पनाह में है।
तूं हर घटना के गुनाह में है।"
तू जानता है, ये मैं हूं।
मैं तेरा खौफ हूं।