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Navneet Gupta

Horror Tragedy Classics

4  

Navneet Gupta

Horror Tragedy Classics

मारे ना होते ?

मारे ना होते ?

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आज दो साल बाद भी

तुम्हारी कुछ यातनायें याद रह गयीं

सदियों तक शायद ऐसे ही डरायेंगीं

जब तक मानवहिलेगा डुलेगा


बेशक कुछ यादगार भी था

मानवीय जीवन हज़ारों साल पहिले की

दिनचर्याओं में आ गया था

निर्जन दीखते शहर

आत्मनिर्भर व्यक्ति

कार्बन फ्री आकाश-अच्छा नीला

सड़कें ख़ाली ख़ाली- सुनसान

कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी

वैसे पलों की


अनायास वो घटता गया

घटने के लिये

सारे संसार में

बहुतों के बहुत गये॥

बहुतों के कुछ

पर डरा सब को गये॥

कुछ ने आपदा में अवसर निकाला

कई ने अवसर आपदा में जानें भी दी॥


अब मत आना तुम

यूँ तो तुम घर देख गये हो

फिर भी बख्सना मानव को

वो तुम्हारा काम खुद ही करता है

कितने ही कितनों को खा जाते हैं

अन्जाने जाने॥

हे कोरोना !


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