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Kumar Vikash

Romance Tragedy

5.0  

Kumar Vikash

Romance Tragedy

अकेले चल रहे थे

अकेले चल रहे थे

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खड़े थे भीड़ में हम,

और खुद को तन्हा

समझ रहे थे।


सजी थी हसीनों की महफिल,

और तेरे बगैर इन आँखों से

आँसू झलक रहे थे !


मुकम्मल न हुये वो अरमाँ मेरे,

जो तेरे लिये इस दिल में

पनप रहे थे,


देखे थे जो वो ख्व़ाब तेरे,

मेरे सीने में

अब भी मचल रहे थे !


हुस्न का जलवा थी तू,

एक तुझे देख

शहर के नौजवाँ बिगड़ रहे थे ,


था खुद पर गुमान तुमको,

जो तुम इन राहों पर

अकेले चल रहे थे !


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