अकेले चल रहे थे
अकेले चल रहे थे
खड़े थे भीड़ में हम,
और खुद को तन्हा
समझ रहे थे।
सजी थी हसीनों की महफिल,
और तेरे बगैर इन आँखों से
आँसू झलक रहे थे !
मुकम्मल न हुये वो अरमाँ मेरे,
जो तेरे लिये इस दिल में
पनप रहे थे,
देखे थे जो वो ख्व़ाब तेरे,
मेरे सीने में
अब भी मचल रहे थे !
हुस्न का जलवा थी तू,
एक तुझे देख
शहर के नौजवाँ बिगड़ रहे थे ,
था खुद पर गुमान तुमको,
जो तुम इन राहों पर
अकेले चल रहे थे !

