अजीब दुनिया
अजीब दुनिया
सुनो!
सब कहते है इस अजनबी दुनिया मे
भावनाओ का कोई प्रवाह नही होता,
तो क्या ये सबका जुड़ना और लगाव अनायास यूँ ही होता?
कोई पूछता है क्या कभी खुद से
आभासी होता क्या है?
ये ब्रह्मांड, ये प्रकृति, हमारी इंद्रियां, सभी देव् आभासी ही तो है,
फिर सबसे इतना जुड़ाव क्यों?
मुझे आभासी तो , आध्यात्म लगता है..
अध्यात्म ही तो प्रेम है।
और जहां प्रेम होगा वहां सन्तुलन भी होगा,
उसे नियंत्रण से क्यों मापा जाता?
प्रेम में नियंत्रण ही तो ऊर्जा का स्रोत है
हमारी शक्तियों को संतुलित व्यवहार सिखाता है जुड़ाव,
वरना हम कब सोचते है किसी के बारे में...?
हम कब रोकते है किसी को उसकी निजता की राहों में?
आभासी हो या वास्तविक
जब कोई मद्धिम आवाज
बिना शोर किये बहुत गहरे से उतर जाएं,
बिना स्पर्श के भी उसे महसूस किया जाएं,
ताकि छूने मात्र से वो नश्वर न बन सकें,
एक मामूली से इमोजी से सारी भावनाएं प्रकट कर दी जाएं,
सोचो..
कितना जादुई यथार्थ है ये,
जहां कुछ न पाकर भी खोने का डर हमपर अपना आधिपत्य बनाता..
अबतक हम अपनी इंद्रियों से इतने आजाद नही है
कोई युहीं अपनी मर्जी से आएं और चला जाएं..
या हम किसी से महज आभासी बनकर जुड़े,
और किन्ही लम्हो उसके होने न होने का कोई फर्क न पड़े...
जुड़ाव सन्तुलन है, प्रेम नियंत्रण है
जो अपेक्षा की मौजूदगी लेकर चलता है,
बस वही आभासी है जो आत्मिक होता है,
फिर सब अपरचित है हमारे पास होने वाले जीव जंतु की तरह,
जिनसे हम अनभिज्ञ है, न हमे उनकी परवाह, न कोई नियंत्रण ...
दूर..दूर तक नही,
दरअसल, वो है ही नही.. बस उनके होने का महज एक आभास है ।