ऐ जिंदगी
ऐ जिंदगी
ऐ जिन्दगी मेरे हर मुकाम पर तू मुझे जीने का एक मौका देना।
जिससे इस जमीं से किये हर वादे को निभा सकूं।
कितनी खूबसूरत है तू और तेरी तकदीर
जो मुझे जमीं के इस मोड़ पर ले आयी है
कि मेरा मुकाम मुझे दूरियों के साये में अपने करीब ला रहा है।
ऐ जिंदगी तू दर्द तो है लेकिन एक ऐसा दर्द
जो जीने की तमन्ना नहीं छोड़ता है
और फिर भी तू जीने वाले को दगा देती है आखिर क्यों?
ऐ जिंदगी यह तेरी कैसी विडम्बना है, यह कैसी तेरी अवधारणा है
कि साथ भी है उम्र भर के लिये और साथ नहीं तो पल भर के लिये।
ऐ जिंदगी के मालिक तेरी भी रजा क्या है?
तेरे हर कदम पे सजदा क्या है?
अगर जो तू कहे तो मैं सारी दुनिया को तेरे चरणों की धूल बना दूं
और न कहे तो मैं स्वयं ही तेरे चरणों की धूल हो जाऊं।
माफ करना ऐ जिंदगी मैंने तुझे कभी समझा नहीं
मगर अब समझने की कोशिश कर रहा हूं।
डर सा लगता है कहीं मेरा दर्द उजागर न हो जाये
और जिंदगी के ख्वाब कहीं मिट न जायें।
इसलिये तो कुछ पल के लिये सकपका सा जाता हूं कि
कहीं मेरे जज़बात एक खोखली जुबाँ न साबित हो जायें।
अब जो कुछ भी हो किस्मत में मुझे तो बस तराशना है
यूं ही जिंदगी के सफर में खुद को तेरे लिये
ऐ जिंदगी तेरे दिये इस मौके पर एतबार के लिये।
