ऐ चाँद..!
ऐ चाँद..!
ऐ चाँद..!
तुम अपनी चाँदनी के साथ
रजत मयूख पर सवार
वसुंधरा भ्रमण को जाओगे,
पर जरा देर
ठहर जाओ,
मेरे कुछ सवाल
अनुतरित हैं,
उनका जवाब देते जाओ.. ;
तुम्हारा तो
कोई मजहब,
कोई जाति नहीं है,
फिर क्यो...
तुमको नहीं देख
सकते हम एक साथ..?
तुम तो. ...
हिंदू के भी पूज्य हो..!
मुस्लिमों के भी प्रिय...!
किसी के लिए
चाँद सी महबूबा
हो तो...
किसी के चाँद से महबूब....!
तुमको देखकर
अगर
'ईद' मुबारक'
तो...
होली रंगीन है...।
सुहागन का सुहाग
अमर करते हो
अपना दीद देकर
तो...!
मस्जिद पर भी
तुम्ही टँगे हो..।
अगर हिंदू के
राम हो तो...
रहीम भी मुस्लिम के....!
फिर क्यों...
कोई तुमको एक साथ
देखे तो, पाप और
पुण्य का सवाल आता है...?
जानती हूँ...!
तुमको चाँदनी प्रिय,
पर तुम क्या जानो...
तुम किसके किसके प्रिय हो...??
दो नयन
एक बिंदु पर हो,
तो क्या गुनाह है..??