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रचना शर्मा "राही"

Drama

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रचना शर्मा "राही"

Drama

अधूरे अल्फाज़

अधूरे अल्फाज़

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ख़ामोश होंठों पर लफ्ज़ क्यों नहीं आते ,

ख़्याल करता है दिल विचार ही नहीं आते ।


पर आंखें तोड़ देती हैं होंठों की चुप्पी,

उन्हें क्यों जज़्बात छिपाने नहीं आते ।


ख़ामोशी भी यूं तो एक सजा ही है,

वरना किसे अपने अल्फाज़ कहने नहीं आते ।


ज़िंदगी का कारवां तो धीरे धीरे बढ़ता है ,

पर कुछ मुकाम हम क्यों छोड़ नहीं पाते ।


जब पुराने ज़ख्म भरने लगते हैं,

फिर क्यों नये ज़ख्म हैं मिल जाते ।


कहानियों में ज्यों सब हकीकत लगता है,

असलियत में वो ख़्वाब रह ही जाते हैं ।


हर बात के लिए हम क्यों गिला करते हैं यूं ,

खुदा की इजाज़त हो तो पहाड़ भी हैं हिल जाते ।


हर आरज़ू हर ख्वाहिश ही हो जाए पूरी तो,

इस दुनिया में कहां ईश्वर ही रह पाते ।।



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