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रचना शर्मा "राही"

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रचना शर्मा "राही"

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बचपन की बातें

बचपन की बातें

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वो बचपन की यादें,

वो बचपन की बातें।

बहुत याद आती हैं,

आंखों में आसूं दे जाती हैं।।


वो बचपन की स्वछंदता,

वो बचपन की उद्दंडता।

वो बचपन की उच्श्रृंखलता,

वो बचपन की निश्चलता ।।


 बचपन में वो बारिश में नहाना,

 बहते पानी में वो नाव तैराना।

 काग़ज़ के वो हवाई जहाज उड़ाना,

 चोरी छिपे अमरूद तोड़ कर खाना।।


वो मां के आंचल में छिप जाना,

अंधेरे से भी डर जाना।

बिना बात के हंसना हंसाना,

ज़रा सी बात पर रूठ जाना।।


स्कूल में वो नियमों को तोड़ना,

खिड़की के कांच को फोड़ना।

शिक्षकों को बेवजह सताना,

फिर माफी मांगकर उनको मनाना।।


चाहत है बचपन में लौट जाना,

बच्चों की तरह प्रेम बरसाना।         

उनकी तरह बेफिक्र हो जाना,

बच्चों की भांति हंसना - हंसाना।


 बीता समय कभी लौटकर आता नहीं,

 जीवन की अवस्थायों को मनुष्य पाता नहीं।

 प्रत्येक क्षण को जी भरकर जी लो,

 प्राणी इस जीवन को पुन: पाता नहीं।।।


 


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