क्या पाना है क्या खोना है
क्या पाना है क्या खोना है
क्या पाना है, क्या खोना है ?
वही तो होता है जो होना है।।
समय की धारा में सब बह जाना है।
एक दिन तो सब यहीं रह जाना है।।
क्यों गुरूर करें मिट्टी से बनी इस काया पर।
जब एक दिन इसको मिट्टी में मिल जाना है।।
एहसासों में डूबे हम, भूल गये इस सच को।
कुछ भी कर लें आज हम, बदल ना पाएँगे कल को।।
आत्मतत्व को भूल गये हम, उलझे इस काया में।
लगाया दिल इंसानों से, दू्र हुए अंतर्मन से।।
दिल रोता है,दिल हंसता है ,है इंसानों सा व्यवहार ये।
इस मोह माया में उलझे हम ना करते स्वीकार ये।।
इंसानों से होती ग़लती, फिर धिक्कारें खुद को।
आत्मग्लानि में जलकर खो देते हैं खुद को।।
हर दिन रहता नहीं एक सा, भूल जाते इस सच को।
सब कुछ पा सकते हैं,हम ग़र भूलें अहम को।।
सबको जानें सबको मानें खुद को आत्मसात करें सब में।
अपने अहम को भुला कर शामिल हों सबके सुख-दुख में।।
इंसानों सी फ़ितरत रखना है सबसे आसान।
लोभ,क्रोध,मोह,मद,माया,ईर्ष्या हटा दो ग़र बनना हो महान।।
कभी कभी सब कुछ खोकर भी हम कुछ पा जाते हैं।
उस खोने की निराशा में ना नया अवसर जान पाते हैं।।
जो होना हो होता वही है क्यूं इसको समझ ना पाते हैं।
अपने गमों में डूबे हुए हम खुद को ही बस तड़पाते हैं।।
जो हुआ समझे उसको ईश्वर की इच्छा का सम्मान करें।
खुद को संभाले और अपना आत्मोत्थान करें।।