लम्हे से कहा मैंने
लम्हे से कहा मैंने
लम्हे से कहा मैंने
रुक जा तू, कहाँ बढ़ चला??
मैं जी लूं इस लम्हे को पूरी तरह...
पा लूं ख्वाबों को अपने, हो जाऊँ फ़ना....
कहा लम्हे ने मुझसे...
आज कैसे रुकूं ?? क्या अब तक मैं कभी रुका...
मेरा तो काम ही है चलते जाना...
लम्हा लम्हा जुड़कर ही वक़्त बनाना...
जो जी ले आज में बस वही मुझे पाए...
जो बीते कल को खोजे वो मेरे जाने पर पछताये..
मैंने कहा....
हाँ मैं जानती हूँ सब मानती हूँ ...
पर दिल को कैसे समझाऊँ ???
वो तुझको ही पाना चाहे...
रोक कर तुझको बस तुझमें खो जाना चाहे...
लम्हे ने कहा...
तो समझा लो दिल को...ये तो नादान है...
मैं चाहकर भी नहीं रुक सकता, क्या इस सच से अंजान है ...
छोड़ो इसको, रहने दो अंजाना...
पर तुम जानो ये, तुमको पड़ेगा समझना...
लम्हा ना कभी रुकता है...लम्हा ना कभी रुकेगा...
लम्हा तो आगे ही बढ़ेगा तभी तो ये वक़्त बनेगा...
मैंने कहा लम्हे से...
ठीक है तुम्हें बढ़ना है तो बढ़ जाओ...
रुक नहीं सकते तुम तो मुझे मत समझाओ...
मुझको रहने दो अपने लम्हे की यादों के साथ...
लम्हा तो बढ़ जाएगा, मेरी तन्हाई, मेरी यादें होंगी मेरे साथ...