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रचना शर्मा "राही"

Others

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रचना शर्मा "राही"

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बेफिक्र होना चाहती हूं

बेफिक्र होना चाहती हूं

1 min
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मेरा पीछा करने वाली भीड़ से

अब मैं बचना चाहती हूं ।

खुद के मन से हर खौफ भगाना चाहती हूं ।

दूर कहीं उस एकांत में 

जाना चाहती हूं ।

मैं पहाड़ों की खामोशी में

खो जाना चाहती हूं।

जहां कोई न मुझे पहचाने न जाने

ऐसा जहां मैं पाना चाहती हूं ।

दूर तक फैले पेड़ पास दिखता आसमां

जहां कोई न सुने मेरी आवाज़

वहां खुलकर खिलखिलाना चाहती हूं ।

जहां कोई न हो आसपास

वहां मैं मस्त अल्हड़ बनना चाहती हूं ।

बांहे फैला मैं ठंडी हवा की छुअन,

महसूस करना चाहती हूं ।

दूर उन रास्तों पर मीलों चलकर,

थककर चूर होना चाहती हूं ।

सुबह का सूर्योदय शाम का सूर्यास्त

रात का चांद निहारना चाहती हूं ।

सुकून से लेटकर धरती की गोद में

मैं तारों से बतियाना चाहती हूं ।

बच्चों सी निश्चल बेफिक्र होकर

मैं आंखों में ख़्वाब सजाना चाहती हूं।



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