अभिसारिका नायिका
अभिसारिका नायिका
शृंगार करके सज- धज के गोरी चली
नायक से मिलने अंधेरी आधी रात को,
घना काला अंधकार चहुँ दिशि फैला
सुनसान भयानक रास्ता सॉंपों से घिरा।
प्रणय का तीव्र आवेग हृदय में उठा
बाधाओं को कर नज़रअन्दाज़ चली,
परवाह नहीं की घोर तूफ़ानी रात की
अभिसारिका मीत से मिलने चली।
मार्ग के तरु के तने से लिपटा है सॉंप
नायिका के पैरों के पास भी है सॉंप,
नायिका आई है पदत्राण के बिना
शीघ्र मिलन की कामना पाले मन में।
बिजली कड़क रही है आसमान में
पैरो की पायल गिर गई है मार्ग में,
काम
िनी मुड़कर गिरी पायल देखती है
पर सर्प के भय से उठा नहीं पाती है।
लाल लहंगे पर नीली चुनरी है डाली
हाथों में वलय ग्रीवा में माला है सजायी
कर्णफूल कानों में मॉंग में झूमता टीका
सजा के मनोहर रूप मानिनी चली।
डगर है सूनी नहीं कोई पास
तरु- पॉंतिै भी लगे परछाईं सी,
काम- शर उर में शूले उत्कण्ठा भारी
पावस ऋतु में मदाकुल बन चली।
इस चित्र के कवि चितेरे हैं मौला राम
जो थे 1743-1833 में इतिहास वेत्ता भी,
और भारतीय चित्रकार मुग़ल शैली के
कॉंगड़ा पेंटिंग की गढ़वाली शैली के भी।