किसी आम व्यक्ति का ज़िक्र नहीं, अपने पिता की बातें करता हूँ। किसी आम व्यक्ति का ज़िक्र नहीं, अपने पिता की बातें करता हूँ।
बसन्त ऋतु में विराजे माता शारदा सबका करती हैं जो कल्याण। बसन्त ऋतु में विराजे माता शारदा सबका करती हैं जो कल्याण।
तब अनुभूति होता है के आज के क्षण हैं महाप्रभु के महाप्रसाद। तब अनुभूति होता है के आज के क्षण हैं महाप्रभु के महाप्रसाद।
मुदित भये मन नयन निहाल बिरज में होली खेलत नंदलाल। मुदित भये मन नयन निहाल बिरज में होली खेलत नंदलाल।
दशरथ के अंगना खेलै सुत, चारिउ देखि मुदित महतारी। दशरथ के अंगना खेलै सुत, चारिउ देखि मुदित महतारी।
चित-शांत,सतीत्व मर्यादित, अलौकिक-सा किरदार हूँ मैं। चित-शांत,सतीत्व मर्यादित, अलौकिक-सा किरदार हूँ मैं।