मन की बातें
मन की बातें
मन में उछलते नाचते हैं कई बातें,
कभी याद आते हैं वारदातें तो कभी मुलाक़ातें
मानस के सभी बातें कहने हेतु नहीं मिलेंगे पद,
महा समंदर सम हर भाषा की गहराई का नहीं है कोई भी हद
अक्षर अक्षर के सटीक संयोजन से बने संवाद,
मन के सभी भावनाओं को नहीं कर सकते हैं अनुवाद
मन की बातें करते समय अगर नहीं है सही स्वाद,
तो निश्चित हो सकता है किसी के साथ वाद विवाद
किसीको अभिव्यक्त न करें अपने मन के भेद,
जान भी नहीं पाएंगे कब कौन बनेंगे विभीषण नारद
मनोरम बातें कह सुनकर करें परिवेश को आह्लाद,
मनचाहे सभ्य बातें कहने से मिले गुरुजनों से आशीर्वाद
संदर्शन होते हैं जब श्री लक्ष्मीनारायण जी के पद्मपाद,
मन में प्रतिध्वनि से प्रारंभ होते हैं ठकुरानी ठाकुरजी के लिए निनाद
श्रवण होता है जब साँझ की बेला का शंखनाद,
तब अनुभूति होता है के आज के क्षण हैं महाप्रभु के महाप्रसाद।