स्त्री हूँ मैं
स्त्री हूँ मैं
चित निर्मल,हृदय पावन,
छवि मनोहर मनभावन।
गंगा की निर्मल धार हूंँ मैं,
गीता का पावन सार हूँ मैं।
हर्षित कर दूं अन्तर्मन को,
खुशियों की बौछार हूँ मैं।
सृजन शोभा हूँ सृष्टि की,
ईश्वर की अनुपम कृति-सी।
मातृत्व का दुलार हूँ मैं,
मानवता का आधार हूँ मैं।
चित-शांत,सतीत्व मर्यादित,
अलौकिक-सा किरदार हूँ मैं।
राष्ट्र की अनोखी भक्ति-सी,
पुरूषों की प्रेरणा शक्ति-सी।
प्रकृति का श्रृंगार हूँ मैं,
सृष्टि का आधार हूँ मैं।
सर्वस्व समर्पित,परहित में,
त्याग के लिए तैयार हूँ मैं।