अब तय है सतयुग का आना
अब तय है सतयुग का आना
हिंदू धर्म कराह रहा है, कलियुग को होगा ही जाना,
अब तय है सतयुग का आना।
नंगे बदन फिरेगा भूखा, आदि-पुरुष शंकर बे-चारा,
ठौर मिलेगा नहीं कहीं भी, हिमगिरि ही छानेगा सारा
चूहा-मोर-बैल के संग जब खोजेंगे परिवार ठिकाना।
अब तय है सतयुग का आना।
कमला-पति की जगमग दुनिया, सागर के अधबीच बसेंगीं
पहरेदार हजारों विषधर, वैभव की लहरें मचलेंगीं,
लक्ष्मी के बदचलन दिवाने, रच लेंगे इतिहास पुराना।
अब तय है सतयुग का आना।
अमरपुरी स्वच्छन्द भोग की, धरती से नभ तक फैलेगी,
सपनों में ही स्वर्ग संजोए, गौरव नर्क प्रजा भागेगी,
नारद-विष्णु-इंद्र के छल को पूजेगा भरपूर जमाना।
अब तय है सतयुग का आना।
एक नई भाषा देवों की, नगरों के गुरुकुल में होगी,
अभिजातों के पूत पढ़ेंगे, निपट अपढ़ होंगे श्रमभोगी,
बिगड़ रही थी बात तभी से जब से मैं सीखा पढ़ पाना।
अब तय है सतयुग का आना।
राजे, राजपुरोहित, श्रेष्ठी, नए-नए नित रूप धरेंगे
तृषित यती तपसी का जीवन, कोटिक जन संवरण करेंगे
सत्ता का इतना सत होगा कण-कण को होगा झुक जाना।
अब तय है सतयुग का आना।
हिंदू धर्म कराह रहा है कलियुग को होगा ही जाना।
अब तय है सतयुग का आना।