Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Yogesh Kanava Litkan2020

Tragedy Inspirational

4.5  

Yogesh Kanava Litkan2020

Tragedy Inspirational

अब कौन जनक आए

अब कौन जनक आए

1 min
238


अश्वथामा का ब्रह्माश्त्र

अब नहीं गिरता

उत्तरा के गर्भ पर

अब तो वो गिरता है

हर गर्भस्त उत्तरा पर ही

कहते हैं सीता

अजन्मा थी वैदेही थी

पर वो एक ही थी

अब तो घर घर में

अजन्मा हैं

देह धारण से पहले ही

उसे विदेही बना देते हैं

पुरुष की आकांक्षा में !

पर उसकी भी तो कोई सुने पुकार

पूछती हर एक से यही सवाल

हे पुरुष

तू मुझको बता दे

क्या मैं युग युग तक

यूँ ही अजन्मा रहूंगी

भोगती रहूंगी

पीड़ा और संत्रास

अपने वैदेही होने का

तुम ये तो सोचो

मेरे बिना तुम्हारा अस्तित्व कहाँ है

बनकर बेटी

मैं तेरे घर में आती

पुलकित करती , घर को हर्षाती

नन्ही हथेलियों से मैं

तेरे गालों पे थपकी लगाती

मैं बनती पत्नी तो

तेरा घर महकाती

हर दुःख दर्द में

तेरे साथ मैं चलती

तेरे हर आंसू के बदले

अपने प्राणों की आहुति देती

तुम जाते जो कहीं बाहर

पलक आँगन डगर बुहार

मैं करती तेरा इंतज़ार

नयनों की भाषा में

तुझको सब समझा देती

जब करती मैं सोलह शृंगार

और

तेरी जननी भी , मैं बन जाती

तुझको अपना अमृत पिलाती

तू घुटनों चलता

मेरा आँचल थाम

मैं वारी जाती हर पग पर

तुझको मुन्ना ,राजा बेटा

कहकर पुकारती

तेरा बचपन मैं संवारती

पर

तूने तो मुझको

अजन्मा ही रहने दिया

आने ही नहीं दिया

धरती पर मुझको

अब मैं कैसे तुझे समझाऊँ

मैं बन मांस लोथड़ा

कुल्हड़ में गाड़ी जाती

अब कोई हल नहीं चलता

सूखी बंजर धरा पर

अब कौन जनक आये

वैदेही को देहि बनाने !



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy