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Arunima Bahadur

Action

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Arunima Bahadur

Action

अब और नही

अब और नही

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सजा कर संस्कारों से, भेज बाबुल ने ससुराल।

भोली सी वो बेटी प्यारी, हुई घरेलू हिंसा की शिकार।।

क्या करती फिर वो बेचारी, किससे भला दुखड़ा रोये।

जो घर कभी अपना था, आज जैसे पराया होए।।

सकुचा सकुचा कर, वह चुप रह जाती ।

न दुख किसी से कभी कह पाती।।

मुस्काते चेहरे के पीछे, दर्द हिंसा का छिपाती।

माँ की सीख, बस हँस कर वो जी जाती।

क्या करेंगे बाबुल मेरे, जो मैं विरोध कर जाऊँ।

शायद अपने स्नेह से, विजय संघर्षों पर पाऊँ।।

जब रखा था कदम ही पहला,

जेठानी ने चिल्लाया था।

जेठ ने गर्म चाय का प्याला,

नादान पर निशाना लगाया था।

पति बेचारे कुछ न समझे,

शांत बस नादान को करते गए।

हर दिन नई हिंसा को,

बस साधारण कहते गए।

कभी जो न रही थी भूखी,

बरसो भोजन को तरस गयी।

काम बोझ से लाद पर उसको,

जेठानी महान बन गयी।

कितने किये प्रयास भी सबने,

जीवन लीला छीन जाए,

तोड़ कर शरीर, मन से,

अबला उसे बनाया जाए।

पर ठोकर खा खा कर वो,

स्वयं ही दुर्गा बन गयी,

उठाया एक दिन जो क्रोध का अस्त्र,

अबला से सबला तब हुई।

क्यों फिर खोयी है तू नारी,

इन कष्टों का समंदर में,

जाग जरा और ले हुंकार,

तोड़ असुरता के बंधन को।

तू हार न मान कभी,

फिर कौन तुझे हराएगा,

तेरी शक्ति के आगे,

हिंसा का दानव हार जाएगा।।



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