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MOHIT BHASIN

Tragedy Action

4  

MOHIT BHASIN

Tragedy Action

हृदय की संवेदना

हृदय की संवेदना

1 min
340


बैठा हूं मझधार में अकेला, पर हैं किनारे कई दर्शक।

खुश हूं फिर भी इस भवर में, हर जखम के सौ मरहम।


इतिहास पुराना है मानव का, ईश्वर समझें सब पैसे को।

आत्मा जागे जब अंदर की, तो है क्या मृत्यु से डरने को।


पल-पल अंदर चेत रहा हूं, धड़कन हृदय की झेप रहा हूं।

शाख के तेरे ही कंठफोड़वे, हर तने को कचोट रहे हैं।


उन्हें पता है,हैं इतने से, फिर अहम को क्यों भोग रहे हैं।।

जग जाने हरकत उनकी, शामिल हैं जो हर सितम में।


सिमट कर चलता है जीवन जिनका, चेहरे उनके हैं बहुतेरे।

मिलेंगे तुझे हर जगह पर, खाट के उल्लू इस तरह के।।


हो जाओ निष्ठुर विरुद्ध उनके,

खींचे जो तुझे तनिक भी स्वयं के आडंबर से ।।


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