असल के पैमाने
असल के पैमाने
ठहरा हूं हर शाम , सुबह के आगाज में
वक्त की गर्दिशों में, शामिल हूं हर लिहाज से
पैमाना कुछ मेरा भी है, तू नजरबंद खुद के खयालात से
मुश्किलें ओढ़ी हैं, तू है सिर्फ इत्तिफाक से
कौन सी वो शमा है, जो कभी बुझती नहीं
दीदार हो असलियत का, कर लो मालूम अगर
वक्त भी शामिल नहीं, असलियत की नुमाइश में।