STORYMIRROR

MOHIT BHASIN

Abstract

3  

MOHIT BHASIN

Abstract

असल के पैमाने

असल के पैमाने

1 min
1.1K

ठहरा हूं हर शाम , सुबह के आगाज में

वक्त की गर्दिशों में, शामिल हूं हर लिहाज से


पैमाना कुछ मेरा भी है, तू नजरबंद खुद के खयालात से

मुश्किलें ओढ़ी हैं, तू है सिर्फ इत्तिफाक से


कौन सी वो शमा है, जो कभी बुझती नहीं

दीदार हो असलियत का, कर लो मालूम अगर


वक्त भी शामिल नहीं, असलियत की नुमाइश में।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract