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MOHIT BHASIN

Inspirational

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MOHIT BHASIN

Inspirational

गबन

गबन

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छुपा हूं इस मस्तिष्क में, दिया बलिदान कई वीरों ने।

खुद से पूछे खुद की छाया, किया क्या तूने उन हस्तियों का ।।

सहती रही घना अत्याचार, दशक के हर एक पहरे में।।।

मैं शोकाकुल हूं इस दृष्टि पर, जो लहूं ना जानें शहीदी का।।।।

मर चुके हैं कर्तव्य उनके, जो लाख फिरौतीयाँ लेते हैं,

हर बात पर जुल्म करते है और हर शाम नदारद रहते हैं।

न जाने वो की शहीदी क्या, सिर्फ सयाना खुद को कहते हैं।।

शौक नहीं उन्हें खुदा का, खुदा के नाम पर गबन करते हैं।।

जालिम नहीं हैं खुदा ये खुदा की वफा है, 

तू जब तक है सिर्फ उसकी मर्जी पर खड़ा है।

तू न मालूम कर जनवरी और अगस्त की आजादी,

तू जान केवल सिर्फ इतना

समझ अपना कर्तव्य सैनिक, हर रोज सीमा पर पहरा देते हैं।।


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