खुशियाँ
खुशियाँ
चिल्लर भर खुशियाँ
कौन देता है हमें
अपनी खुशियों का
ठिकाना ढूंढना है हमें
हर कोई व्यस्त है
अपनी ही उलझनों में
क्यों खड़े हो जुट जाओ
अपने जवाब ढूंढने में
सिख लो हर हुनर
पाना है खुद ही को मुकाम
शर्म का घूंघट हटाकर
करते रहो तुम अपना काम
सुख की परिभाषा बदलो
जीवन सुखमय होगा
हर पल को जीना सीखो
जीवन सरल होगा
ख्वाहिशें ना रखो किसी से
जो ना हो कभी पुरी
खुद ही उठाओ जिम्मा
हो जाएगी ख्वाहिशें पूरी।