इक तूफ़ान की आहट
इक तूफ़ान की आहट
मेरी खामोशियों को
मेरी कमजोरी मत समझना ए जिंदगी
ये वह खामोशी नहीं है
जो तू समझ बैठी है
आज पता चला कितनी नासमझ है तू
कितनी भोली कितनी नादान है तू
जानती तो तू भी है कि
तूफान भी आने से पहले
अपनी मंज़िल का जायज़ा लेता है
शायद इसीलिए ख़ुद से पहले खामोशी को
उतारता है मैदान में
मेरी इस पल की खामोशी भी
उसकी ही आहट है
रहना ज़रा संभल कर उन राहों में
जिधर पड़ेंगे अब क़दम मेरे
बहुत घुमाया है तूने
बहुत ललचाया है तूने
तेरी हर चालाकी से अब वाकिफ हूँ में भी
अपनी आंखों से अब तू भी देखेगी
खुले आसमान में मेरी ऊंची परवाज़
इस खामोशी में छिपे हैं
मेरी जिद्द और बुलन्द हौसले
मेरा जुनून और पसीने की महक
तू बस कर इंतज़ार उस तूफ़ान के आने का।