क्या फर्क़ पड़ता है ?
क्या फर्क़ पड़ता है ?
एक माँ ने अपना बेटा तो एक बेटे ने अपना बाप खोया है,
तो वहीं एक बाप अपने बेटे को सलामी देते रोया है,
तुम क्या जानो अपनों को खोने का दर्द
ये वही जानता है जिसका कोई अपना खो गया
पर क्या फर्क़ पड़ता है जनाब
एक फौजी ही था शहीद हो गया।।
कि तुम्हारी मौत भी वो अपने सिर ले गया,
अपनी जिंदगी अपनी उम्र भी वो तुम्हें दे गया,
बदले में शहादत का रंग और तिरंगा संग ले गया,
जो डटा रहा देश सेवा में हरदम
अब धरती माँ की गोद में सो गया,
पर क्या फर्क़ पड़ता है जनाब
एक फौजी ही था शहीद हो गया। ।
फर्क़ पड़ता है एक सोच का जनाब
देश यूँ ही सुरक्षित नहीं उसे बनाया गया है,
तिरंगा यूँ ही सजा नहीं
शहादत के लहू से सजाया गया है।
वो वीर हैं जो तुम जैसों के लिए गोली खा गए
और तैयार हैं हर ज़ख्म सहने को
'जिनकी जुबान पर अब ताला लगा है
"क्या फर्क़ पड़ता है जनाब गोली ही तो है"
हम भी खा सकते हैं' कहने को ।।।
