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Archana kochar Sugandha

Action

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Archana kochar Sugandha

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उस खामोश रिश्ते को क्या नाम दूँ

उस खामोश रिश्ते को क्या नाम दूँ

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बनते बिगड़ते सम्बन्धों की कहानी

को नाम देने लगे रिश्तों की जुबानी।

पर उस रिश्ते को क्या नाम दूँ

जो न बना, न बिगड़ा,

न कोई गिला, न कोई शिकवा,

न जुड़ा और न ही टूटा,

न ही कोई भाषा का संवाद था,

और न ही आपसी वाद-विवाद था,

बड़ी खामोशी से वो मेरे जीवन में देने लगा दस्तक

न जाने कब उसके आगे झुक गया मेरा मस्तक।

 

उसकी आँखें बोलती थीं

बिन शब्दों के डोलती थीं।

उसके नुपूर की झंकार

शायद किसी अप्सरा का थी वो अवतार।

उसके आने से मेरे जीवन में आती थी बहार

जैसे वो हो सावन की फुहार।

उसकी मदमस्त अदा में था ओज़

जैसे दीए में जल रही हो जोत।

उसके वजूद में था नूर का सज़दा

जैसे मन्दिर में घण्टियों का बजना।

वो सुरमई पवन की ताल

जो बजाती थी मेरे जीवन के सातों राग।

 

उस रिश्ते को मैं दर्द का देने लगा नाम

जो गर्म लूँ के थपेड़े में भी

सर्द हवा का करता था काम।

मेरे जीवन की शान्त लहरों में

उसका वजूद सिहरन और कम्पन

का कराता था अहसास

जैसे मैं उससे जुड़ चुका था हर साँस।

पर आज बड़ी खामोशी से

उसने इस संसार से मूंद ली अपनी आँखें

खत्म हो गई सारी बातें।

 

काश, समय रहते मैं उसे कह पाता

यह घर भी तेरा है,

यह दर भी तेरा है,

यह मन भी तेरा है,

यह तन भी तेरा है,

तेरे वजूद से ही मेरे जीवन में सवेरा है।

आज नहीं होता पछतावे का अहसास

अगर मैं जुड़ जाता उससे साँस-साँस।

                                              


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