कलियुग है।
कलियुग है।
अब यहाँ चेतावनी नहीं दी जाती है साहब,
दु:ख-दर्द तकलीफें बढ़ती जाती बेहिसाब।
बुराई अन्याय पाप चरम सीमा पर पहुँच गए,
इंसानियत, मानवता का क़त्ल होता सरेआम।
आज झूठ, लालच, ठगी सबकुछ है स्वीकार,
सच और ईमानदारी का करते सब है शिकार।
अब प्यार का खुलेआम लोग करते है व्यापार,
सरेआम दिल बेचकर औकात वाले से करें प्यार।
औरतें शर्म भूल गई और पुरुष भूला है संस्कार,
कुछ गुरु धर्म भूल कर करते कुकर्म अभी यार।
फ़र्क़ ये नहीं सतयुग या कलियुग चल रहा यार,
अच्छे कर्म तो सतयुग, बुरे तो यह कलियुग है।