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Vivek Agarwal

Action Inspirational

4.9  

Vivek Agarwal

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प्रयाण गीत (पञ्चचामर छंद)

प्रयाण गीत (पञ्चचामर छंद)

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चले चलो बढ़े चलो, वतन तुम्हें पुकारता।

सवाल आज आन का, कि आस से निहारता॥


ललाट पर तिलक लगा, स्वदेश भक्ति साथ है।

अशीष मात का मिला, असीम शक्ति हाथ है॥


नमन सदैव शौर्य को, कि शक्ति ही महान है।

कि वीर की वसुंधरा, यही सदा विधान है॥


चढ़ा लहू कटार से, यहाँ उतार आरती।

भले तू खंड-खंड हो, रहे अखंड भारती॥


समक्ष कौन टिक सके, समस्त हिन्द साथ में।

अजेय सैन्य दल चला, लिये तिरंग हाथ में॥


हिमाद्रि मार्ग में खड़ा, उतंग तुंग तोड़ दो।

प्रवाहिनी पड़े अगर, नदी प्रवाह मोड़ दो॥


असंख्य शत्रु सामने, गिरे न स्वेद भाल से।

कि सामने अगर पड़े, लड़ो कराल काल से॥


अतीव कष्ट भी मिले, न शीश ये कभी झुके।

कुचक्र लोभ मोह के, कदम कभी नहीं रुके॥


रहे अचल अटल सदा, नहीं करे अधीरता।

न अस्त्र से न शस्त्र से, जयी सदैव वीरता॥


अदम्य शूर वीर तू, उठा धनुष कृपाण को।

कि भेद लक्ष्य व्योम में, चला अचूक बाण को॥


न मौत अंत वीर का, कथा समस्त जग कहे। 

समान सूर्य चंद्र के, सुयश सदा अमर रहे॥


न तू न मैं न ये बड़ा, बड़ा स्वदेश है सदा।

सदैव स्वाभिमान हो, स्वतंत्र राष्ट्र सर्वदा॥


समाप्त शत्रु आज हो, समस्त दम्भ को हरो।

उठा सके न शीश फिर, समूल नाश तुम करो॥


लिखा हुआ ‘विवेक’ का, प्रयाण गीत नाम है।

जवान को करूँ नमन, ‘प्रसाद’ को प्रणाम है॥


(भारतीय सेना और श्री जय शंकर प्रसाद जी को समर्पित)


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