Vishabh Gola

Tragedy

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Vishabh Gola

Tragedy

अब और कितना?

अब और कितना?

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घिसूँ कितना खुद को मैं

चमक मेरी कम नहीं

लेगी कितने इम्तेहान तू ए- जिंदगी

घिस कर खुद को 

आखिर में

मिट जाऊं क्या?


अब तो मिला दे मंजिल से

खुदा की नियत भी कहे

समेट के चला दर्द ,जख्म संघर्ष के मैं

आखिर में

बिखर जाऊं क्या?


छोड़ा था जिन्हें गम भुला के

आंखों से निराशा की नमी भुला के

उन्हीं से वापस लिपट जाऊं क्या


घिसूँ कितना खुद को और मैं

आखिर में

मिट जाऊं क्या?


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