अधूरे
अधूरे
शब्द मेरी शायरी के अधूरे रह गए
गुस्ताखियां, जो कबूल कर गए
अधूरी थी जिंदगी मेरी, काबिल- ए- तारीफ
तुम आए और सारे अल्फाज पूरे कर गए
तारीफों के सूने आसमान में सितारे भर गए
बदनामियां थी,कई अंजाम थे
एक-दो नहीं, कई इंतकाम थे
मिटाना चाहा लोगों ने मेरा नाम और निशान,
नफरतों का जहर पिला गए
तुम आए और दो जाम मेरे नाम के लगा गए
अधूरा था मैं किसी रोजाना,
साथ पूरा दे कर मेरा लोगो को उनकी औकात दिखा गए
अधूरे हैं बादल कमी क्या झलक रही है
दौलत है, पर जेबों में खनक अधूरी लग रही है
तुम आए, लबों पर हंसी और आंखों में चमक दिखा गए
लेकर आए तोहफा, और फ़लक दिखा गए
मांगा था बस खुशी का एक अधूरा टुकड़ा
तुम तो पूरा मुखड़ा ही लेकर आ गए।