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नवल पाल प्रभाकर दिनकर

Drama Romance

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नवल पाल प्रभाकर दिनकर

Drama Romance

आत्मा ओर परमात्मा

आत्मा ओर परमात्मा

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आज जब मैं

भरी पूरी जवान होकर

आई हूँ सजधज

प्रिये तुम्हारे सामने

तुमने नजरें झुकाली क्यों ?

क्या अब वह टकटकी

मुझपर नही है सधी।

अब मेरा यौवन

छेडता है वही सुरभि

जिसकी एक तान पर,

कई सौ तानसेन

लगा सकते हैं राग झड़ी

ओर एक तुम हो प्रिये ।

जो मुझे देखना भी

शायद इसलिये पसंद नही करते

क्योंकि अब मैं पत्थर से

पारस बन कर

मलिन से कुलीन बन कर

गंदगी की दलदल से निकल कर

साफ सुन्दर स्वच्छ होकर

पूरी तरह दूध में नहाकर

ज्ञान रूपी ज्योति जगाकर

दुष्ट गंदा बुरा तन त्याग कर

आ पहुंची हूँ द्वार तुम्हारे

खोलो अपने कपाट हे प्रिये

ले लो अपने चरणों में

कर दो सारे अवगुण क्षमा

फि र से अपना लो मुझे

मैं हूँ तुम्हारी,

रहूंगी सदा यूं ही कुंवारी।


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