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Jeevan singh Parihar

Drama

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Jeevan singh Parihar

Drama

आरक्षण

आरक्षण

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201

मत पीसो इस चक्की में,

मैं भी इंसान हूँ,

हाँ, मैं भी इंसान हूँ।


मेरे भी अपने है,

उनके भी सपने है।

मत चूर करो इन सपनों को,

जो वर्षो से देखे हैं।


मैं भी मेहनत करता हूँ,

अपने लक्ष्य को पाने में,

मगर पीसने के कारण (आरक्षण) मैं,

हर बार विफल हो जाता हूँ।


बतलाओ तो इतना मुझको,

क्या है ? क़सूर मेरा,

मैं भी इंसान हूँ,

हाँ, तुम भी इंसान हो।


मेहनत करते समय दिलोदिमाग में,

बस एक ही ख़ौफ रहता है,

कई पीस न जाऊँ मैं,

इस आरक्षण की चक्की में।


बंद करो इस चक्की को,

जिसमें लाखों सपने पीसे जाते,

इन आज़ाद फिज़ाओ में,

मैं भी स्वतंत्र हूँ,

हाँ, तुम भी स्वतंत्र हो।


मत पीसो इस चक्की में,

मैं भी इंसान हूँ,

हाँ, मैं भी इंसान हूँ।


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