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शशि कांत श्रीवास्तव

Romance

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शशि कांत श्रीवास्तव

Romance

आँसुओं को पनाह नहीं मिलती

आँसुओं को पनाह नहीं मिलती

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यह सच है --कि

उनको पनाह नहीं मिलती

इस जहान में

कब और कहाँ आ जाये

पता नहीं ....


सहारा मिले या नहीं

गम हो या खुशी

उनको तो आना ही है

बिन बुलाये मेहमान की तरह।


कई बार कहा है कि ...

एकांत में आया करो पर

वह आ जाती है जब....मैं

महफिल में या लोगों के बीच

होता हूूँ....


आकर नम कर जाती है

नयनों को

और कहती है..

भीड़ में भी तन्हा थे तुम,


मैं तो आती हूँ

साथ देने को

इस तन्हाई में ....

मुझे तो पनाह भी नहीं मिलती

घड़ी भर की कहीं...तभी तो

इन आंसुओं को पनाह नहीं मिलती

इस जहान में......


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