आखिर कब तक?
आखिर कब तक?
आखिर कब तक प्रतिभाओं का हनन होगा ?
समाज के रीति रिवाज, लोग क्या कहेंगे ?
इन ख्यालों से हटकर अपने बारे में सोचने का कब चलन होगा ?
लाद देते हैं बचपन से ही मां बाप अपने सपने बच्चों के सिर पर।
बच्चों का बचपन अब बचा ही नहीं।
गूगल से सुनकर कहानियां बड़े हो रहे हैं अब बच्चे,
संस्कारों का क्यों ना पतन होगा ?
परीक्षा में केवल अव्वल आना ही सफलता का पैमाना है।
मन को मार कर,दिन रात एक कर,
ले आए 100 में से 100 नंबर अब आप ही बताओ
जिसके आए 99 नंबर अब उसका क्या होगा ?
जिंदगी एक भेड़ चाल सी हो गई है।
प्रतिभाएं घुट घुट कर स्वयं ही समाप्त हो रही है।
कभी व्यस्त जिंदगी, कभी लोक लाज का भय, कभी उम्र का बंधन,
समझ नहीं आता खुद के बारे में
खुद ही कुछ करने का समय कब होगा ?