"आख़िर क्यों?"
"आख़िर क्यों?"
सुनते हैं आग में,
सोना भी कुंदन बन जाता है,
आख़िर क्यों ? औरत को बनवास हो जाता है ?
दोनों की सज़ा औरत के माथे मंढ़ दी जाती है ?
कितनी ही पवित्र क्यों न हो,
आख़िर क्यों ? कुलटा कहलाती है ?
फाँसले जब हो जाये,
तलाक़ का दम भरते हैं,
कुछ और कहते बनता नहीं,
आख़िर क्यों ? चरित्र का हनन करते हैं ?
वंश आगे बढ़ता नहीं,
दोनों हक़दार होते हैं,
आख़िर क्यों ? औरत को ही बाँझ कहते हैं ?
घर में पैर रखते ही, लक्ष्मी की बरसात हो जाये,
लक्ष्मी कहलाती है, न हो तो,
आख़िर क्यों ? मनहूस बन जाती है ?
पुरुष और औरत में कोई फर्क नहीं,
पुरुष पर इस्री से बात करे,
मर्दानगी कहलाती हैं,
औरत करें तो,
आखिर क्यों ? कुलक्षिणी बन जाती हैं ?
अपने घर को छोड़कर,
पराये घर आकर रहती हैं,
त्याग - बलिदान की मूर्ती है जो,
आखिर क्यों ? पैर की जूती कहलाती है ?
साँस जिसके जितने लिखे,
एक दिन कूच कर जाना है,
आखिर क्यों ? पति के मरने पर,
औरत के माथे इल्ज़ाम मंढ़ दिया जाता है,
औरत - औरत को जानती भी है, पहचानती भी है,
आखिर क्यों ? औरत ही औरत की दुश्मन कहलाती है ?
आखिर क्यों ? सीता को अग्नि को साक्षी बनाना पड़ा ?
आखिर क्यों ? सीता को धरती में समाना पड़ा ?
आखिर क्यों ? भरी सभा में द्रोपदी को चीर बढ़वाना पड़ा ?
आखिर क्यों ? द्रोपदी को अपने केशों को हथियार बनाना पड़ा ?
आखिर क्यों ? पद्मिनी के साथ हज़ारों
स्त्रियों को सती हो जाना पड़ा ?
आखिर क्यों ? निर्भयाओं को अपनी अस्मत के
तार-तार होने पर, अपने प्राणों को गँवाना पड़ा ?
आखिर क्यों "शकुन" आखिर क्यों ?
हम नारियाँ ही हर्ज़ाना भरती रहें ?