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Shakuntla Agarwal

Tragedy

4.9  

Shakuntla Agarwal

Tragedy

"आख़िर क्यों?"

"आख़िर क्यों?"

2 mins
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सुनते हैं आग में, 

सोना भी कुंदन बन जाता है,

आख़िर क्यों ? औरत को बनवास हो जाता है ?

दोनों की सज़ा औरत के माथे मंढ़ दी जाती है ?


कितनी ही पवित्र क्यों न हो,

आख़िर क्यों ? कुलटा कहलाती है ?

फाँसले जब हो जाये,

तलाक़ का दम भरते हैं,

कुछ और कहते बनता नहीं,


आख़िर क्यों ? चरित्र का हनन करते हैं ?

वंश आगे बढ़ता नहीं,

दोनों हक़दार होते हैं,

आख़िर क्यों ? औरत को ही बाँझ कहते हैं ?

घर में पैर रखते ही, लक्ष्मी की बरसात हो जाये,


लक्ष्मी कहलाती है, न हो तो,

आख़िर क्यों ? मनहूस बन जाती है ?

पुरुष और औरत में कोई फर्क नहीं,

पुरुष पर इस्री से बात करे,


मर्दानगी कहलाती हैं,

औरत करें तो,

आखिर क्यों ? कुलक्षिणी बन जाती हैं ?

अपने घर को छोड़कर,


पराये घर आकर रहती हैं,

त्याग - बलिदान की मूर्ती है जो,

आखिर क्यों ? पैर की जूती कहलाती है ?

साँस जिसके जितने लिखे,


एक दिन कूच कर जाना है,

आखिर क्यों ? पति के मरने पर,

औरत के माथे इल्ज़ाम मंढ़ दिया जाता है,

औरत - औरत को जानती भी है, पहचानती भी है,


आखिर क्यों ? औरत ही औरत की दुश्मन कहलाती है ?

आखिर क्यों ? सीता को अग्नि को साक्षी बनाना पड़ा ?

आखिर क्यों ? सीता को धरती में समाना पड़ा ?


आखिर क्यों ? भरी सभा में द्रोपदी को चीर बढ़वाना पड़ा ?

आखिर क्यों ? द्रोपदी को अपने केशों को हथियार बनाना पड़ा ?

आखिर क्यों ? पद्मिनी के साथ हज़ारों

स्त्रियों को सती हो जाना पड़ा ?


आखिर क्यों ? निर्भयाओं को अपनी अस्मत के

तार-तार होने पर, अपने प्राणों को गँवाना पड़ा ?

आखिर क्यों "शकुन" आखिर क्यों ?

हम नारियाँ ही हर्ज़ाना भरती रहें ?      


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