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Nir Delhi

Tragedy

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Nir Delhi

Tragedy

आजादी की मौत

आजादी की मौत

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कहाँ मैं जाऊँ

पत्थर की मारी हूँ।


इस दुनिया की निकाली हूँ

ग़लती मेरे साथ हुई

मैं क्यों ग़लत हूँ।


क्या मैं रात को

घूम नहीं सकती।


अपने मन चाहे कपड़े

पहन नहीं सकती


हर किसी से क्यों मैं

बात नहीं कर सकती।


यह गुलामी की जिंदगी

और जी नहीं सकती।


रात को घूमने निकली

घर से थोड़ी दूर ही निकली।


कुछ लोगों ने मुझे पकड़ लिया

बोले- रात का जुगाड़ हो गया।


सहम गई चिल्लाने लगी

इधर-उधर देखने लगी।


कोई नहीं था

मैं बेजान होने लगी

रहम की भीख माँगने लगी।


वो जानवर थे

मुझे पर टूट पड़े।


मुझे नोच डाला

वो घर को जा निकले

मुझे वहीं छोड़कर।


उठी घर गई,

घर वालों ने इज्जत का डर दिखाया

मुझे एक कमरे में बंद कराया।।


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