आज़ाद मन
आज़ाद मन


मन मेरा आज़ाद-स्वछंद पंछी,
गगन छूकर आने को जी चाहता है।
माना मुहब्बत है चाहत का पिंजरा,
पिंजरबंद हो जाने को जी चाहता है ।
खुशियों का मुखौटा लगा छोटा लगने,
अब मुखौटा हटाने को जी चाहता है।
मुड़कर न देखेंगे ये वादा किया था,
वो वादा भुलाने को जी चाहता है।
ये माना ख़फा है, दिल-ओ-जान मेरा,
उसे फिर मनाने को जी चाहता है।
ये माना है बेरंग सी जिंदगानी हमारी,
हसीं रंग चढ़ाने को जी चाहता है।
दुनियादारी सोचकर मैंने, खुद को खूब समेटा
आज अरमानों को पाने का जी चाहता है।
बहुत रोये बिलखकर बेवफाई में तेरी,
खुशियां अपनाने को जी चाहता है।
माना हम हैं छोटे, बड़े अपने सपने,
उन सपनों को पाने को जी चाहता है।
तेरी चाहत के सप्त रंग छाए नीलम मन पर,
मैं रंग दूँ ज़माने को जी चाहता है।
सुनकर फिज़ाओं में ये इश्क की सरगम,
मिलन गीत गाने को जी चाहता है।
मिलन गीत गाने को जी चाहता है।
वो यमुना किनारे मुरलिया की धुन पर,
कदम थिरकाने को जी चाहता है।
शरद पूर्णिमा का चाँद देखकर के,
चकौर बन जाने को जी चाहता है।
वो माना मुकद्दर में नहीं अपने नीलम,
उसे अपना बनाने को जी चाहता है।