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Dr. Manish Singh Bhadauria

Drama Fantasy

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Dr. Manish Singh Bhadauria

Drama Fantasy

कृष्ण गांधारी संवाद

कृष्ण गांधारी संवाद

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शोभा नहीं देता है केशव तुम ऐसा पक्षपात करो 

बचा के अपने अनुजों को तुम मेरे कुल का घात करो


मार दिए जो भीमसेन ने, मेरे राज दुलारे थे

कुरुओ के वो कुल दीपक, हम अंधो के उजियारे थे


किसी को मारा ,किसी को काटा, पटक धरा पर चीर दिया

कृष्ण तुम्हारे बकोदर ने, निज भ्राता का लहू पिया


माना के सुयोधन ने षड्यंत्री दयूत रचाया था

बोलो अपनी भार्या को किसने दाँव लगाया था?


और मेरा वो कुल नाशी द्रोपदी को खींच के लाया था

नारी का अपमान किया था, कोख़ को मेरी लजाया था


लेकिन केशव तुम्हे किसी ने क्या ये भी बतलाया था

मेरा सुयोधन इंद्रप्रस्थ में,अंध पुत्र कहलाया था


फिर ये कैसा न्याय चक्र है, ये कैसा विधान हुआ

कृष्ण तुम्हारे सुदर्शन ने निज प्यारो को नही छुआ


शस्त्र नही उठाया लेकिन तुमने भी आघात किया

छिपा सूर्य अपनी लीला से जयद्रथ का संघात किया


तुम्ही वही लीलाधर हो जिसने भीष्म को फांस था

बना के आड़ शिखंडी को, अपने अर्जुन को ढाँका था


पाकर अछौहिणी सेना भी, सुयोधन मेरा वंचित था

बेमन थे सारे महारथी, राधेय ही उसका संचित था


इंद्र को विप्र बनाया तुमने, इंद्र जाल फैलाया तुमने 

रथ से उतरे महारथी को, धोखे से मरवाया तुमने 


गिरी को धारण करने वाले, न्याय वहन तुम कर न सके

अवतरण लेकर आने वाले, महामानव तुम बन न सके


रक्त प्रवाह के रुक सकता था, तुम में इतना संबल था

अर्जुन गांडीव छोड़ चुका था, मन मे ऐसा दल दल था


 लेकिन उसे उकसाया तुमने

शंखनाद करवाया तुमने

अश्वत्थामा मारा गया का मिथ्या शौर कराया तुमने

जैसे ही बैठे द्रोण ध्यान में, सिर विच्छेद कराया तुमने


शोभा नही देता है केशव तुम ऐसा पक्षपात करो

बचाके अपने अनुजों को तुम मेरे कुल का घात करो


एक पुत्र को बचा लू में, क्या मुझको ये अधिकार न था?

वो हमारी बैशाखी था, केवल एक शिकार न था


तुमसे न कोई वर मांगा था, न कोई हथियार लिया

मेरी पतिव्रत शक्ति को, अपने पूत पर वार दिया


है धिक्कार तुम्हे हे केशव, तुमने क्या व्यभिचार किया

मेरी अंतिम आशा को भी, जांध पीट कर मार दिया


शोभा नही देता है केशव तुम ऐसा पक्षपात करो

बचाके अपने अनुजों को तुम मेरे कुल का घात करो


में भी तुम्हे शिशुपाल मानकर , गिनतियां करती आई

पी डाले निन्यानवे प्याले, क्षमादान देती आई


पर इस सौ वी गलती का श्राप तुम्हे में देती हूँ

कुल तुम्हारा मिट जाएगा, हाय में ऐसी देती हूँ


शोभा नही देता है माँ, मेरा नियति से बच जाना

पीड़ा देकर तुमसी माँ को मेरा निर्मल रह जाना


माँ तेरे अभिशाप को में वरदान समझकर रखता हूँ

तूने जो आरोप दिए स्वीकार उन्हें में करता हूँ


माँ तेरे इस लोक में, मैं धर्म स्थापन करने आया था

कर्म योग की महिमा का सत्यापन करने आया था


जब भी धर्म की हानि होगी,मैं ऐसा पक्षपात करूँगा

खुद हांकूँगा धर्म रथ को, ऐसा ही वज्रघात करूँगा


जब राजन मन से अंधा हो, कुपूत गले का फंदा हो

शकुनि से शुभचिंतक हो, विदुर वाणीया बंधक हो

तब तक ये संग्राम रहेगा, मुझको न विश्राम रहेगा


है माँ आंखों की पट्टी को; जो तुमने त्याग दिया होता

बन सकती थी अंध राजन की आँखे,इस विनाश को भाँप लिया होता


खीर का जहर निवाला हो, या लाक्षागृह की ज्वाला हो

खांडवप्रस्थ का झांसा हो या, कुटिल शकुनि का पाँसा हो


माँ तुम्हारी चुप्पी ने भी दुर्योधन को बलवान किया

धर्म की डगति पताका ने फिर मेरा आह्वान किया


माँ इन अठारह दिनों में, मैं ही करोड़ो बार मरा

मैंने ही शस्त्र उठाया, मेरे तन पर घाव पड़ा।


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