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Jyoti Deshmukh

Fantasy

4  

Jyoti Deshmukh

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नारी श्रंगार

नारी श्रंगार

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हर काम व्यवस्थित करती हर किसी का ख्याल रखती 

अपनों से जो करती प्यार, अपने बच्चो में जिसकी दुनिया बस ती

मन में उमंग भर थोड़ा सज संवर ले नारी तू कर ले श्रंगार 


सजती माथे पर बिंदी तो पूरा चेहरा निखर जाएगा,

भाल तेरा दमक कर रूप तेरा संवर जाएगा 

बिंदी तू जो लगाती भारतीय नारी कहलाती 

जो बोले सदा मृदु मधुर वाणी शालीन सभ्य संस्कृति का परिचय कराती 

वो तेरा वात्सल्य, एक अपनेपन की अनुभूति,ममता भरा हाथ सभी से स्नेह और प्यार 

मन में उमंग भर थोड़ा सज सँवर ले नारी तू कर ले श्रंगार 


भारतीय नारी जो सदा संतुष्ट रहती अपने परिवार की जो जान कहलाती 

पहनती जो वो साड़ी भारतीय नारी होने का गौरव बढ़ा ती,

पश्चिम सभ्यता का परित्याग कर गजरा, बिन्दी, चूडी, पायल,

मंगलसूत्र पहने भारतीय नारी होने का अह्सास कराती 

बड़ों को सम्मान, छोटे को प्यार दे वो अपना कर्तव्य निभाती 

अपने इस भारतीय पहनावे से भारत का नेतृत्व करती, सभी के दिल पर कर राज 

मन में उमंग भर थोड़ा सज सँवर कर ले नारी तू श्रंगार 


जब नारी पहनती कानो में झूम के तो कानो में एक संगीत स्वर सुनाती 

प्रभु का स्मरण कर भजन गाती, पूजा पाठ कर

अपने परिवार की खुशहाली व सुख समृद्धि के लिए प्रार्थना करती 

प्रभु के द्वार पर जो मन्नत के धागे बाँधती 

एसी भारतीय नारी जो धर्म का पालन करती, प्रभु का स्मरण कर जो धार्मिक कहलाती 

जिस नारी के दिल में सदा रहे ईश्वर का वास, दिल जिसका मंदिर जैसा पवित्र 

कान्हा की मधुर बंसी जो छेड़े तान 

मन में उमंग भर थोड़ा सज सँवर कर ले नारी तू श्रंगार 


जब नारी अपने केश सुलझाती तो जीवन के कई उलझने पल भर में सुलझ जाती,

होठों पर जो लाली लगाती तो मंद मंद मुस्करा जाती 

अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर जो मर्यादा में रहती 

अपशब्द ना कह किसी से सदा मिश्री सी वाणी कहती 

अपने शील व्यवहार से जीत लेती सबका मन 

अपने शिष्ट स्वभाव से करती सभी से अच्छा व्यवहार 

मन में उमंग भर थोड़ा सज सँवर नारी कर ले तू श्रंगार 


जब गले में पहने माला तो दिल के टूटे ख्वाब जुड़ेंगे,

एक माला में मोती अनगिनत एक धागे में पिरोए रिश्तों को रख

सहेज ना कभी रिश्तों को ना बिखरने दे पाए 

रिश्तों सम्बन्धों का सदा रखती जो मान,

विभिन्न संस्कृति में जो रहकर भारत में 

जो अनेकता में एकता का जो अह्सास कराए 

मन में उमंग भर थोड़ा सज सँवर कर ले नारी तू श्रंगार 


नारी जब पहने मंगलसूत्र अपना पत्नी धर्म निभाती

एक सलाहकार बन पति का मार्गदर्शन करती, सुख दुःख साथ निभाती 

अपनी बौद्धिक क्षमता का परिचय जो देती,

विषम परिस्थितिया में भी जो हिम्मत नहीं हारती 

इन्द्रधनुष के सात रंगों की तरह अपना हर किरदार निभाती 


सज जो आंगन में ठहरती अपनों को करीब लाती 

उसकी भलाई, मीठी वाणी, धार्मिक, सादगी,

मर्यादा ये भारतीय नारी के गुण उसके वास्तविक श्रंगार कहलाते

उसके शील व्यवहार से पहचानी जाती अपना सर्वस्व लुटा ती 

मन में उमंग भर थोड़ा सज संवर कर ले तू श्रंगार।


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