नदियाँ बहती है, क्योंकि....
नदियाँ बहती है, क्योंकि....
कभी कभी मेरा मन मुझे सवाल करता है
क्यों ये नदियाँ समंदर से मिलने के लिए इतनी बेताब होती है ?
समंदर से मिलने की आस में वे
हर बाधा को पार करती जाती है
उस बेताबी में पहाड़ों से रुक कर
लड़ने की बजाय वे अपनी धारा मोड़ लेती है
लगता है कुछ तो खास बात होती होगी इन समंदरों में
जो ये नदियाँ उससे जा मिलती है
क्या इन नदियों को समंदर की गहरायी भाती है ?
या नज़र आती है उसकी खामोशी में कोई कशिश ?
अपना नाम, अपना मूल और अपना वजूद भूल कर
वे समंदर की गहनता और उसके
अपरिमित विस्तार से मोहब्बत करती हैं
बड़ी मासूमियत और पूर्ण समर्पण से
समंदर की ओर भागती हैं
राह में आनेवाले सारे बाँध तोड़कर
नदियाँ समंदर से मिलने जाती है
वह भूल जाती है कि रास्ते में
कही कही उन्हें पूजा भी गया था
उन्हें अन्नपूर्णा कहा गया तो
कही पाप नाशिनी कहा गया
इसलिए उन्हे समर्पण में
वजूद खोने का भी डर नहीं लगता
एकाकार होने की ख़ुशी होती है....
और इसी खुशी में उन्हें याद नहीं रहता है
कि समर्पण और निस्वार्थता की कितनी बड़ी क़ीमत है ?
वह अपना नाम खो देती है
और उसका चेहरा बदल जाता है
समंदर की मोहब्बत में उनकी
मिठास वाली पहचान नहीं रहती
वे खारे और नमकीन पानी
में तब्दील हो जाती है....
हाँ,वह जानती है कि समंदर के
वक्ष पर सूर्य चमकता रहता है
और वे भाप बनकर एक बार फिर
व्योम की नि:सीम ऊँचाइयों तक पहुँचेंगी
वे उम्मीद से भरी बदली बन जाएँगी
किसान और तरसती अवाम की
आँखों की उम्मीद बन जाएँगी....
एक बार फिर से किसी के खेत में बरसेंगी
एक बार फिर से वह नदी बन जाएगी....
उन नदियों को पुनीता,अन्नपूर्णा और भी
बहुत नामों से सम्बोधित किया जाएगा
उन्हें फिर से अपना समर्पण और निस्वार्थता और बेताबी दिखानी होगी ताकि सभ्य कहलाने वाले लोग कुछ सबक़ लें...
हाँ,नदी यह बख़ूबी जानती है
किसी की आँखों की उम्मीद की किरण बने रहने के लिए
निरंतर,अनवरत और बिना शर्त समर्पण ज़रूरी होता है
क्या समंदर अपनी उपलब्धियों पर
अहंकारी हो गया है कि उस पर
इतनी नदियाँ न्योछावर हैं?
क़तई नहीं......
वह भी बड़ी हलीमी से इकरार करता है कि उसके वजूद की परिभाषा "बहुत सारी नदियाँ" है
और ऐसा वह हर पल सरगोशी करता है....
अपनी लहरों की गर्जना में कहता है मैं "नदियाँ हूँ "
वाह रे नम्रता!
क्या कभी समंदर की लहरों को देखा है?
कितनी बेताबी से वसुधा की ओर बढ़ती हैं !
ये समंदर का तो नहीं लेकिन नदियों का स्वभाव जरूर है
और हाँ ! समंदर की इस
हलीमी का इनाम भी मिल जाता है...
दुनिया की कोई भी जगह या कोई भी
बशर गर अपनी ऊँचाई को नापना चाहता है
तो उसे समुद्र तल को ही आधार बनाना पड़ता है
किसी ने नदियों से जिज्ञासा वश पूछा,
"तुम्हें वाष्प बनकर नील गगन की असीम ऊँचाइयों में उड़ने और फिर वर्षा की स्नेहिल बूँदें बनने का और किसी की आँखों कीउम्मीद बनने का सौभाग्य कैसे मिला?"
नदी ने मुस्कुराकर जवाब दिया,
"समंदर के साथ दीवानगी की क़ीमत वह
उसके खारेपन में तब्दील होकर चुकाती है...."
