यादें
यादें
फुर्सत हो और कुछ भी कर गुजरने का जज्बा हो तो बैग पैक किया और चल पड़ते हैं दुनिया को नापने अपने पैरों से। श्री कृष्ण ने मथुरा छोड़ी और पहुंच गये गुजरात। वहीं बसा ली अपनी द्वारिका समुद्र के मध्य।
गोपियां और राधा भी पहुंचे थे उनसे मिलने,जिनकी निशानियां जीवंत रखे हुए हैं आज भी हजारों साल की यादें। न जाने कितने चले आए भारत पर राज करने और कितने चले गये । मगर छोड़ी हुई निशानियां हमें आज भी उस दौर से रूबरू करवाती हैं।
जहां समुद्र है ,वहाँ विस्तार है और निरंतरता भी । सृष्टि नियंता के साथ अठखेलियां करने का रोमांच और आत्मीयता का अनुभव भी । हर लहर तादात्म्य स्थापित कर लेती है आगंतुक के साथ। राधा ने गुजरात जाने का मन बनाया। जब वहाँ का भोजन , संस्कृति से साक्षात्कार हुआ तो उसने मीरा के लिए मैसेज लिखा।
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गुजरात से दीव जाते हैं तो नागोआ बीच जाकर लोग जी भर कर मस्ती करते है। यहाँ एक दो घंटे आराम से बिताए जा सकते हैं। गोवा जैसा ही है यह । कहते हैं जिन्हें गुजरात में पीने को नहीं मिलता है,वे यहां आकर पीते हैं और इंजाय करते हैं। इसके नजारे यहाँ प्रत्यक्ष देखें जा सकते हैं।"
…." सड़क पर बनी बाउंड्री से अंदर पहुँचते ही समुद्र और उसमें पैराग्लाइडिंग करते हुए मोटरबोट दिखाई देने लगते हैं। किनारे पर ऊंट ,मोटर बाइक और अन्य खेलों का आनंद भी लुत्फ उठा रहे थे लोग। सभी की एक्टिविटी से यह बीच रंगीन प्रतीत होता है। जलपान की बहुत सी दुकानों पर लोग खाने - पीने का भी आनंद ले रहे थे ।
पानी की लहरें हैं और भीगने का मन ना करे। यह तो हो ही नहीं सकता। पैराग्लाइडिंग और राफ्टिंग के लिए उम्र की सीमाएं हैं । इसलिए बस किनारे बैठ कर मैं तो लहरों से गुफ्तगू करती रही। बीच समुद्र में उड़ान भरते ग्लाइडर्स और गुब्बारों के रंग देखने पर तो प्रतिबंध नहीं है । अतः जी भर के उन्हें देखा। ऊपर चमकता सूरज और नीचे कुलांचें मारता समुद्र। बीच में ड्राइवर का फोन खटकता है। इन्हें जल्दी ही अपनी शिफ्ट निपटानी होती है। पानी में अठखेलियां करते युवक -युवतियां। ये नयन सुख भी तरोताजा कर देते हैं। सागर और साहिल हम जैसे लोगों के लिए ही हैं। किनारे पर ही बहुत सी खाने पीने की दुकानें हैं। आवाज आती है,अरे! आ भी जाओ
कब तक बैठे रहना है। "
" आती हूँ । पूरे दिन के लिए गाड़ी किस लिए की है ? पूछिए ड्राइवर से। लोग पता नहीं क्या पीने आते हैं ? इसकी बालू में भी अपना नशा है। आपको नहाना नहीं है तो सामने लगे नारियल के पेड़ देखते रहिए। कितनी अच्छी पेंटिंग की तरह लग रहे हैं।"
" सूखने में समय लगेगा। जल्दी आ जाइए , कुछ खा लेते हैं। फिर चलना भी है।"
" हा हा हा, ये कोका कोला हाथ में लेकर पीने की भरपाई की जा रही है। लाइए पी ही लेते हैं वरना मलाल रहेगा कि बिना पिए ही लौट आए।"
बाहर निकलने पर बचपन याद आने लगता है। सड़क के किनारे ठेलों पर नारियल तो मिलते ही हैं साथ में कच्ची इमली,सूखे बेर ,कच्ची अंबिया की चाट और एक अन्य फल भी यहां बहुतायत में मिलता है। ये दृश्य अब उत्तर भारत में दिखाई नहीं देते।
पोरबंदर बीच भी जाग्रत बीच है लेकिन यहाँ खाने-पीने के लिए कोई शाॅप नहीं है।
अब क्या बताऊं, तुम्हें भी यहाँ आना चाहिए। मन
उत्साह से तरंगित हो तो उसकी झंकार औरों को भी सुनाई पड़नी चाहिए। है कि नहीं ? जब फुर्सत हो तो काल करना। मैं तुम्हें आँखों देखा सच दिखाऊंगी। वीडियो काल पर ..... तुम्हारी सखी राधा।