चुम्बन
चुम्बन
मॉनसून की इस घरी में
तुमसे हो ब्यारों की लड़ी में
वो हलकी पहली बूंद सा
स्पर्श कर मैं तुम्हें चुमना चाहता
हाँ मेरे इस अलौकिक योजना का
साक्ष्य ये हसीन और खूबसूरत
प्राकर्तिक सौन्दर्य भी रहेंगे
तमाम संवेदना अर्पित कर
अनुराग में विभोर होंठ को मैं
कोपल आँचल बना
तुम्हारे सजल ओस से होठों पे
बादल सा ढक जाऊंगा
हाँ स्वास्त् ये चुम्बन तुम्हें
अचम्भित कर जाएगा
थोड़ी देर के लिए ही मगर
मुझमें विलय कर जाएगा
फिर जागृत तुम्हारी वो
अंगभंग करेंगे व्याख्या मेरी
और वलय स्वरूप मैं सजूँगा
तुम्हारे ओठ तुम्हारे
कोमल हृदय और
तुम्हारे सृजित अस्त्वित्व् में
बन के कामिल साजन तुम्हारा।

